
Facebook का यह मेला क्या है?
अजी समझो, यह एक भूल भुलैया है
‘गर अन्दर गए,
तो फिर बाहर आने की कोशिश,
मान लो आप, वोह बेकार ही है.
अब ले लो इस बला को
जिसे कहते हैं लोग ट्विट्टर …
पंछियों की इस चह-चहाट में
ढूँढें किस तरह से हम
कोयल की उस मीठी कुहू कु को!
जुड़ जाते हैं हम रोज़,
आज इस फोरम में
कल उस महफ़िल में
निशाना और मकसद
हैं सभी के अलग अलग.
कोई है हसीं चेहरे की तलाश में
कोई चाहत को पुकारते हुए
किसी को तरन्नुम की,
तो किसी को साज़ की
तलाश करते करते
किसी आवाज़ खींच लाती है
किसी के गीत बुलाते हैं हमें
किसी को दोस्ती की खोज है
तो किसी को नौकरी की
किसी को सिफारिश की ज़रुरत है
किसी को सुन्दर लड़की; या युवा लड़के की ख्वाहिश
आप खुद यहाँ क्यों हैं, क्या आप को है पता
माफ़ कीजिये, सवाल मन में उठा खुद अपने वास्ते
पर पूछ लिया आप से!
चलो, निकल पड़ते हैं साथ साथ
इस सवाल के जवाब की खोज में
वहीँ से शुरू करते हैं खोज अपनी
जहां खो जाना आसान है;
करोड़ों की संख्या जो है!
पर अजीब बात यह है की
खोकर भी चुटकी में मिल जाना आसान है.
ढूंढो, और न मिले, यह तो बात नामुमकिन है
एक गूगल ही तो है
जहां खोजना मुमकिन है,
और खोकर पाना और भी आसान!
यह तो था सिर्फ गूगल सर्च
पर हुआ यह के लग गए लोग
करना सर्च के ऊपर सर्च,
यानी मान लो रिसर्च!
पर बहुत हो गया यह सिलसिला
छोडो यह facebook , ट्विट्टर का चक्कर,
आओ, फिर से उस जगह
जहां पचपन से कम उम्र के मिलते हैं इंसान
जिनको सीधे शब्द में कहते हैं लोग ‘जवां’!
कहो इसे एक नया अड्डा, या कहो अनोखा सा इक घर,
यह शहर, यह जगह, यह, मोहल्ला, बस है तो यह
एक अनोखी दुनिया
जिसे हम पहले कहते थे गली का नुक्कड़,
आज वोह है दोस्तों और दोस्ती का मिश्रण
सर्च की कोख से जन्मा यह संगम
चलो, मिलते हैं एक अलौकिक गली में
उसे आप नुक्कड़ कहो… कोई कहे हेंग-आउट
technology वालों ने दिया नाम उसे Google +!